विलुप्त होती उत्तराखंडी संस्कृति से रूबरू हो रहे बच्चे-युवा


- बोलियों के संरक्षण की अनोखी पहल पर हो रही कक्षाएं 

दिल्ली देहात न्यूज टीम
लगातार दूसरे सप्ताह भी पहाड़ी बोलियों को बचाने के लिए ग्रीष्मकालीन कक्षाओं का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम नई पीढ़ी के बच्चों को अपनी संस्कृति से परिचित कराने के लिए चलाया जा रहा है। देवभूमि उत्तराखंड एकता मंच नरेला के अध्यक्ष नरेंद्र भैंसोड़ा ने उक्त जानकारी देते हुए बताया कि कक्षाओं का आयोजन फ्रेंच ओपन पब्लिक स्कूल, सफियाबाद रोड से संचालित इन कक्षाओं में कुमाऊनी और गढ़वाली बोलियों को सिखाया जा रहा है। ये प्रशिक्षण कक्षाएं प्रत्येक रविवार को सुबह 9.30 से 11.30 तक चल रही है। जिसका प्रारम्भ 26 मई रविवार को आरम्भ को हुआ था और और जून माह के अंत तक जारी रहेगा।

इन प्रशिक्षण कक्षाओं में लगभग 40 उत्तराखंडी बच्चे अपनी मातृभाषा को सीख रहे हैं। साथ में अपनी संस्कृति से अनभिज्ञ युवा उत्तराखंडी भी इस कार्यक्रम का लाभ उठा रहे हैं। इस आयोजन के माध्यम से उत्तराखंडी समाज भी साप्ताहिक तौर पर एक स्थान पर एकत्रित हो रहा है, जिससे समाज का आपसी मेल मिलाप बढ़ रहा है। कार्यक्रम के माध्यम से जहाँ एक ओर उत्तराखंडी बच्चों को अपनी मातृभाषा को समझने का अवसर मिला है, वहीं उत्तराखंडी समाज अपने पहाड़ और समुदाय से जुडी समस्याओं पलायन, बेरोजगारी आदि विषयों पर सार्थक चर्चा कर रहा है। आयोजन में उत्तराखंडी महिलाएं भी बढ़ चढ़कर भाग ले रही हैं।

वहीं, मीडिया प्रभारी ओमप्रकाश देशवाल ने बताया कि उत्तराखड़ी परम्परा को सुदृढ़ करने के इस महत्वपूर्ण कार्य में उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली और उत्तराखंड एकता मंच दिल्ली का अहम योगदान मिल रहा है। दिल्ली पैरामेडिकल इंस्टिट्यूट द्वारा कक्षाओं के संचालन के लिए उपयोगी प्रशिक्षण सामग्री भी निशुल्क प्रदान की गयी है।
देवभूमि उत्तराखंड एकता मंच नरेला, उत्तराखंडी प्रकृति संस्कृति को सहजने के उद्देश्यों को समर्पित है। संगठन द्वारा नरेला में पिछले एक वर्ष से निरंतर उत्तराखंडी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। साथ में संगठन सामायिक तौर पर नरेला में व्यापत पर्यावरणीय समस्याओं पर भी जनजागरूकता फैला रहा है। इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए भी संगठन के सभी पदाधिकारी और कार्यकारणी सदस्य सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
इस अवसर पर मंच कोषाध्यक्ष-संजय बुड़ाकोटी, महासचिव भीम सिंह रावत, वरिष्ठ सलाहकार हरेंद्र प्रसाद हिंदवान, चंद्र सिंह कर्तवाल, विक्रम भंडारी, सांस्कृतिक सचिव सन्तोष बेनाम, संगठन सचिव देवेंद्र रावत, सचिव आनंद पैपने, उपकोषाध्यक्ष भगवत भंडारी, अन्य सभी कार्य कारणी सदस्य मनोहर रावत, जगदम्बा सती, दिनेश राणा, गोपाल चौहान, विक्रम सामंत, नंदा बल्ल्भ, पूरन खुल्बे, पूरन नेगी, दीवान बिष्ट, आलम सिंह रावत, बलवंत रावत, हेम चंद्र सत्य वली, गीता सत्यवली, आशा मुडेपी, प्रेमा सामंत, आदि सभी मातृशक्ति व वरिष्ठ गणमान्य सदस्यों ने आयोजन को सफल बनाने में अहम भूमिका का योगदान दिया।


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