‘वैज्ञानिक कृषि जल प्रबंधन: खाद्य सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक’
दिल्ली देहात न्यूज टीम
नई दिल्ली : यदि जल संचयन और संरक्षण का यही हाल रहा तो भविष्य में हमें बहुत बड़े जल-संकट का सामना करना पड़ सकता है। 1951 से 2014 तक प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता के घट रहे आंकड़ों का हवाला देते हुए (भाकृअनुप) महानिदेशक एवं (कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग) के सचिव डॉ. त्रिलोचन महापात्र ने गुरूवार को राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर में ‘वैज्ञानिक कृषि जल प्रबंधन: खाद्य सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक’ विषय पर प्रेसवार्ता के दौरान चिंता जताते हुए उक्त बाते कही। महानिदेशक ने बताया कि किसानों और कृषि-संबंधी क्षेत्रों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए प्रेस-मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
डॉ. महापात्र ने कहा कि भारत में उपलब्ध जल का 85 फीसदी कृषि क्षेत्र द्वारा इस्तेमाल में लाया जाता है। उन्होंने कहा कि शुद्ध सिंचाई में 70 फीसदी भूगर्भीय जल का दोहन चिंताजनक है, नतीजतन जल का स्तर भी तेजी से घट रहा है। उन्होंने बताया कि भारत में सिंचाई क्षेत्र के सामने एक महत्त्वपूर्ण चुनौती निर्मित सिंचाई क्षमता (आईपीसी) और सिंचाई क्षमता उपयोग (आईपीयू) के बीच बढ़ती खाई तथा नहर प्रणाली में जल का असमान वितरण है। नहरों के कमान क्षेत्र में कम सिंचाई दक्षता, जल वितरण में असमानता, सिंचाई जल की आपूर्ति और फसल जल की मांग के बीच अंतर, सिंचाई प्रेरित भू लवणता और जलभराव आदि कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं, जिनका सामना करना पड़ रहा है।
महानिदेशक ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से वर्षा आधारित पारिस्थितिकी तंत्र में बढ़ रहे चुनौतियों, मसलन सूखा और बाढ़ का उदाहरण देते हुए कहा कि कृषि क्षेत्र को विकल्प के तौर पर जल के उचित संचयन और संरक्षण को अपनाना होगा। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि जल-उपयोग दक्षता में सुधार या कृषि जल उत्पादकता को बढ़ाने के लिए कई दृष्टिकोण हैं जैसे कि कम जल की खपत वाली फसलों का उच्च जल खपत वाली फसलों के स्थान पर प्रयोग, जल उपयोग दक्ष फसल किस्मों का बड़े पैमाने पर बहुगुणन, सूक्ष्म सिंचाई, फसल प्रबंधन एवं कृषि कार्यों के लिए स्मार्ट एवं सटीक प्रौद्योगिकियों को अपनाना।
डॉ. महापात्र ने कहा कि सूक्ष्म सिंचाई से जल संरक्षण और ‘प्रति बूँद अधिक फसल’ की परिकल्पना संभव हो पाएगी। उन्होंने कहा कि भूजल पर कम-से-कम निर्भरता और अपशिष्ट जल का इस्तेमाल जल संरक्षण और संचयन के लिए अत्यंत आवश्यक है। 1 जुलाई, 2019 से चल रहे भारत सरकार के ‘जल शक्ति अभियान’ को एक सराहनीय कदम बताते हुए उन्होंने कहा कि हमने कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से इस अभियान के तहत लाखों किसानों को प्रशिक्षण, कार्यशाला, मेला और प्रदर्शन के माध्यम से सही सिंचाई एवं फसल चयन के प्रति जागरूक किया है। उन्होंने कहा कि इस अभियान के तहत हमने 500 मेला करने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने यह भी बताया कि इस ऐसे कार्यक्रमों की सफलता के लिए जन-आंदोलन की आवश्यकता है।
अंत में, राष्ट्रीय जल मिशन के तहत जल संसाधनों की आपूर्ति एवं मांग और जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता के लिए राज्य विशिष्ट कार्य योजना (एसएसएपी) तैयार करने में भाकृअनुप के योगदान का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के वार्षिक जल बजट को बनाने में मदद करेगा और उपलब्ध जल संसाधनों के आवंटन और कुशल उपयोग को बढ़ावा देने में मददगार साबित होगा। साथ ही जल संचयन और संरक्षण के लिए भाकृअनुप द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों के बारे में जानकारी दी।
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