धान के बचे हुए अवशेषों (पराली) को ना जलाऐ : पूसा

 



धान के बचे हुए अवशेषों (पराली) को ना जलाऐ : पूसा
- धुंध के कारण सूर्य की किरणें फसलों तक कम पहुंचती है

Mcd Live News         नई दिल्ली, 18 अक्टूबर 2024

किसानों को सलाह है कि खरीफ फ़सलों (धान) के बचे हुए अवशेषों (पराली) को ना जलाऐ। क्योंकि इससे वातावरण में प्रदूषण ज्यादा होता है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) के कृषि भौतिकी संभाग में नोड़ल अधिकारी डॉ. अनन्ता वशिष्ठ ने किसानों को यह सलाह जारी की। उन्होंने बताया कि इससे उत्पन्न धुंध के कारण सूर्य की किरणें फसलों तक कम पहुचती है, जिससे फसलों में प्रकाश संश्लेषण और वाष्पोत्सर्जन की प्रकिया प्रभावित होती है जिससे भोजन बनाने में कमी आती है इस कारण फसलों की उत्पादकता व गुणवत्ता प्रभावित होती है। किसानों को सलाह है कि धान के बचे हुए अवशेषों (पराली) को जमीन में मिला दें इससे मृदा की उर्वकता बढ़ती है, साथ ही यह पलवार का भी काम करती है। जिससे मृदा से नमी का वाष्पोत्सर्जन कम होता है। नमी मृदा में संरक्षित रहती है। धान के अवशेषों को सड़ाने के लिए पूसा डीकंपोजर कैप्सूल का उपयोग प्रति 4 कैप्सूल/हेक्टेयर किया जा सकता है।

बता दें कि भारत मौसम विज्ञान विभाग, क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केन्द्र, लोदी रोड़, नई दिल्ली से प्राप्त मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान साप्ताहिक मौसम पर आधारित कृषि सम्बंधी सलाह 23 अक्टूबर, 2024 तक के लिए कृषि परामर्श सेवाओं, कृषि भौतिकी संभाग के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार किसानों को निम्न कृषि कार्य करने की सलाह दी जाती है। मौसम को ध्यान में रखते हुए धान की फसल यदि कटाई योग्य हो गयी तो कटाई शुरू करें। फसल कटाई के बाद फसल को 2-3 दिन खेत में सुखाकर गहाई कर लें। उसके बाद दानों को अच्छी प्रकार से धूप में सूखा लें। भण्डारण के पूर्व दानों में नमी 12 प्रतिशत से कम होनी चाहिए।

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