आपदा प्रबंधन में एआई निभा रहा है कारगर भूमिका : प्रो पंकज कुमार




आपदा प्रबंधन में एआई निभा रहा है कारगर भूमिका : प्रो पंकज कुमार


- डॉ भीमराव अम्बेडकर कॉलेज में कार्यशाला का आयोजन
- पिछले दस-पंद्रह सालों में जलवायु में तेजी से परिवर्तन देखे गए
- आपदा प्रभावित क्षेत्रों के लोकेशन को ट्रैक करने में आसानी होगी
- खतरा और आपदा दोनों ही अलग विषय
- कार्यशाला की शुरुआत सरस्वती वंदना एवं दीपार्जन के साथ हुई

हरिभूमि न्यूज नई दिल्ली

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के डॉ भीमराव अम्बेडकर कॉलेज के भूगोल विभाग ने आपदा प्रबंधन पर एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला में अतिथि वक्ता के रूप में डीयू के भूगोल विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर पंकज कुमार, जवाहरलाल नेहरू विवि के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रो पी के जोशी और कॉलेज प्राचार्य प्रो सदानंद प्रसाद उपस्थित रहे। कॉलेज आपदा प्रबंधन संयोजक प्रो एम एस कादयान ने कहा कि आज के दौर में आपदाओं में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इसका असर भारत के पहाड़ी और तटीय क्षेत्रों में साफ देखा जा सकता है। इस स्थिति में प्रबंधन का महत्व काफी बढ़ जाता है। मंच संचालन का काम प्रो मोनिका अहलावत ने किया। कार्यशाला में प्रो रियाज़ुद्यीन खान, डॉ ताराशंकर, डॉ विपिन, डॉ स्मृति उपाध्याय, डॉ सतीश सैनी, अंजली भाटी के साथ भारी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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कॉलेज के मीडिया संयोजक प्रो. बिजेन्द्र कुमार ने उक्त जानकारी देते हुए बताया कि कार्यशाला में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए प्रो पंकज कुमार ने कहा कि पिछले दस-पंद्रह सालों में जलवायु में तेजी से परिवर्तन देखे गए हैं। वैश्विक तापमान में लगातार बढ़ोतरी होने से हिमनद पिघलते जा रहे हैं। हिमनदों के पिघलने से पहाड़ी मरुस्थलों में इजाफा हो रहा है। उन्होंने कहा कि पहाड़ों पर बेमौसम बारिश होने से भूस्खलन की घटनाओं में भी बढ़ोतरी है। ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड के कारण पहाड़ों पर आए दिन बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसके निवारण के लिए अंतरराष्ट्रीय भौगोलिक संघ जियो एआई के तकनीक पर काम कर रहा है जिसकी मदद से आपदा प्रभावित क्षेत्रों के लोकेशन को ट्रैक करने में आसानी होगी। उन्होंने प्रधानमंत्री के दस सूत्रीय आपदा प्रबंधन एजेंडा को भी विस्तार से समझाया।


प्रो जोशी ने कहा कि खतरा और आपदा दोनों ही अलग विषय हैं। विशेषज्ञों के अनुसार आपदा हमेशा मानव निर्मित होती है किंतु प्राकृतिक आपदा खतरे के रूप में हम सभी के सामने आती है। उन्होंने उड़ीसा में 3 दिसंबर 1984 में आए विध्वंसकारी सुनामी के कारणों से विद्यार्थियों को अवगत कराया तथा सुनामी से बचने के उपायों को भी बताया। उन्होंने कहा कि यदि सुनामी की चेतावनी जारी हो जाए तो तुरंत ऊंची जगह पर चले जाएं। इससे सुनामी के प्रकोप से बचने में आसानी होती है। प्रो जोशी ने बताया कि भारत के हर जिले में आपदा प्रबंधन की टीम रहती है जिसमें मुख्यमंत्री, जिलाधिकारी समेत राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) के प्रशिक्षित जवान शामिल रहते हैं जो कि आपदा की स्थिति में राहत बचाव कार्य के समय पीड़ितों को भोजन, जल, प्राथमिक चिकित्सा, कपड़े आदि मुहैया कराते  हैं। कार्यशाला की शुरुआत सरस्वती वंदना एवं दीपार्जन के साथ हुई। अतिथि वक्ताओं का स्वागत पौध देकर किया गया। भूगोल विभाग की समन्वयक प्रो तूलिका सनाढ्य ने अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि कार्यशाला में दोनों ही वक्ताओं ने बेहतरीन तरीके से आपदा और उससे बचाव के उपायों की चर्चा की। कार्यशाला से विद्यार्थियों को काफी कुछ सीखने को मिलेगा।

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