ICAR-IARI जल प्रौद्योगिकी केंद्र ने विश्व जल दिवस कार्यक्रम का आयोजन
- जलवायु परिवर्तन की पृष्ठभूमि में भारत और अन्य देशों में ग्लेशियरों की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करना
- जल और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन के लिए एकीकृत कार्य योजना तैयार करना
नई दिल्ली MCD LIVE NEWS
भा.कृ.अनु.प. ICAR-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान IARI, के जल प्रौद्योगिकी केंद्र ने अपने जल सभागार में 22.03.2025 (शाम 4 से 5.30 बजे तक ) को केंद्रीय थीम 'ग्लेशियर संरक्षण' पर विश्व जल दिवस का कार्यक्रम आयोजित किया गया। IARI प्रशासन ने बताया कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य (क) जलवायु परिवर्तन की पृष्ठभूमि में भारत और अन्य देशों में ग्लेशियरों की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करना और (ख) जल और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन के लिए एकीकृत कार्य योजना तैयार करना था। ग्लेशियर संरक्षण के लिए तकनीकी और नीतिगत विकल्पों के रूप में इस कार्यक्रम के अपेक्षित परिणाम और कृषि क्षेत्र में सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन, संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 6 (सभी के लिए पानी और स्वच्छता की उपलब्धता और स्थायी प्रबंधन सुनिश्चित करना) और एसडीजी 13 (जलवायु कार्रवाई) के तहत लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करेगा।
डॉ. ए. के. सिंह, पूर्व उप-महानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन), भा.कृ.अनु.प. और पूर्व कुलपति, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया। डॉ. टी. के. बेहरा, निदेशक, भा.कृ.अनु.प.- भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरु ने सम्मानित अतिथि के रूप में भाग लिया। डॉ. सी. विश्वनाथन, संयुक्त निदेशक (अनुसंधान), भा.कृ.अनु.प.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, डॉ. आर. एन. पडारिया, संयुक्त निदेशक (प्रसार), भा.कृ.अनु.प.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान डॉ. पी. एस. ब्रह्मानंद, परियोजना निदेशक, जल प्रौद्योगिकी केंद्र, भा.कृ.अनु.प.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान भी इस कार्यक्रम के दौरान उपस्थित थे। डॉ. ब्रह्मानंद ने जलवायु परिवर्तन की पृष्ठभूमि में हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की दर और ग्लेशियर संरक्षण के उपायों पर विशेष ध्यान देने के साथ विभिन्न देशों में ग्लेशियरों की वर्तमान स्थिति पर संक्षिप्त प्रस्तुति दी। उन्होंने सदन को सूचित किया कि भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय हिमालय में ग्लेशियरों की संख्या लगभग 9,575 है। चुमा तथा ओंगलक्टांग जैसे कुछ ग्लेशियर 1988 से 2018 तक क्रमशः 3.9 और 4.3 मीटर प्रति वर्ष की दर से पिघलते हुए पाए गए हैं। डॉ. ए. के. सिंह ने समुद्र के जल स्तर में वृद्धि पर ग्लेशियर पिघलने की उच्च दर के प्रभाव और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों के अभ्यास करने की तत्काल आवश्यकता के बारे में बल दिया । उन्होंने तटीय और अंतर्देशीय क्षेत्रों में भूजल संसाधनों के कुशल और सतत उपयोग, सूक्ष्म सिंचाई और जल गुणवत्ता प्रबंधन के तहत क्षेत्र बढ़ाने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों पर भी जोर दिया। सम्मानित अतिथि डॉ. बेहरा ने उल्लेख किया कि भारत के जल की कमी वाले क्षेत्रों में ड्रिप फर्टिगेशन और मल्चिंग जैसी कुशल जल उपयोग तकनीकों के अभ्यास के साथ-साथ कम जल मांग वाली फ़सलों (दलहन, तिलहन और बागवानी) के विविधीकरण को प्राथमिकता दी जाने की आवश्यकता है।
डॉ. विश्वनाथन ने अधिक संख्या में वर्षा जल संचयन संरचनाओं के सृजन या नवीकरण तथा सिंचित कमान क्षेत्रों में वर्षा जल संरक्षण और जल उपयोग कुशल पद्धतियों पर जन जागरूकता अभियानों के माध्यम से भारत में प्रति व्यक्ति भंडारण बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया। डॉ. पडारिया ने सदन को भागीदारी जल संसाधन विकास के महत्व और सामुदायिक सहभागिता मॉडल के माध्यम से वर्षा जल संचयन संरचनाओं के नवीकरण और प्रबंधन के बारे में जानकारी दी। इस अवसर पर जल प्रौद्योगिकी केंद्र, भा.कृ.अनु.प.- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा प्रकाशित हिंदी पत्रिका 'जल सुरक्षा' (मुख्य संपादक: डॉ. ए. के. मिश्रा, प्रधान वैज्ञानिक, जल प्रौद्योगिकी केंद्र) के दूसरे अंक का विमोचन मुख्य अतिथि और सम्मानित अतिथि द्वारा किया गया। कुल मिलाकर, नई दिल्ली स्थित भा.कृ.अनु.प.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, भा.कृ.अनु.प.- राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान और अन्य संस्थानों तथा सीएसकेएचपीकेवी, पालमपुर के शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों, कर्मचारियों और छात्रों सहित लगभग 100 प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लिया है। डॉ. विजय कुमार प्रजापति, वैज्ञानिक, जल प्रौद्योगिकी केंद्र के द्वारा कार्यक्रम का समन्वय किया गया ।
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