मजदूरों ने मांगों को लेकर बवाना में निकली श्रमिक रैली

मजदूरों की मांगों को लेकर बवाना में निकली सैकड़ों श्रमिकों की रैली
- मजदूर नेता बोले : "मजदूरों की एकता से झुकेगी सरकार, नहीं रुकेगा आंदोलन" 

नई दिल्ली 9 जुलाई 2025/MCD LIVE NEWS 

बवाना औद्योगिक क्षेत्र मजदूर यूनियन के नेतृत्व में सैकड़ों मजदूरों ने आज बवाना की सड़कों पर रैली निकाली। यह रैली देशभर में मजदूरों के अधिकारों के लिए चल रही राष्ट्रव्यापी हड़ताल का हिस्सा थी, जिसमें श्रम कानूनों के क्रियान्वयन, न्यूनतम वेतन, ईएसआई, पीएफ और सुरक्षा व्यवस्था जैसे मुद्दों को लेकर आवाज़ उठाई गई।
रैली में यूनियन के कार्यकर्ताओं ने कहा कि अब समय आ गया है कि एक-दिवसीय प्रतीकात्मक और बिना योजना की हड़तालों से आगे बढ़ा जाए। यूनियन के सदस्यों और कार्यकर्ताओं ने अपील की कि श्रमिकों को एकजुट होकर उन मुट्ठीभर फैक्ट्री मालिकों के खिलाफ खड़ा होना होगा जो दिल्ली पुलिस को अपनी सेवा में लगाकर हर विरोध की आवाज़ को कुचलते हैं और मुनाफाखोरी को ही सर्वोपरि मानते हैं।
सभा को संबोधित करते हुए कार्यकर्ता सनी ने कहा कि केंद्रीय ट्रेड यूनियन हड़ताल के हथियार को केवल प्रेशर वॉल्व की तरह इस्तेमाल कर रही हैं। हमें एक दिन की हड़ताल से आगे बढ़ते हुए अनिश्चितकालीन हड़ताल की ओर बढ़ना होगा। जब तक सरकार मजदूरों की एकता के सामने झुक न जाए और हमारी मांगें पूरी न हों, तब तक संघर्ष जारी रहना चाहिए। मोदी सरकार ने श्रमिकों के अधिकार छीनने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और अब वह मजदूर विरोधी लेबर कोड्स को लागू कर रही है। देशभर में जगह-जगह पर हड़तालों की एक श्रृंखला से ही एक क्रांतिकारी मज़दूर आंदोलन की नींव रखी जा सकती है, जो इस पूंजीवादी शासन और इसकी लाभ-केंद्रित व्यवस्था को चुनौती दे सके।"

इस रैली में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों से आए मजदूरों और युवाओं ने भाग लिया। 25 वर्षीय हिमांशु, जो बवाना औद्योगिक क्षेत्र मजदूर यूनियन के सदस्य हैं, ने मजदूरों से अपील की कि वे काम पर न जाएं और इस फासीवादी मोदी शासन के खिलाफ संघर्ष में शामिल हों। हिमांशु ने कहा कि पिछले 11 वर्षों में भारत में कामगार वर्ग की हालत बद से बदतर हो गई है। ठेका प्रणाली, अनौपचारिकता और प्रशिक्षण के नाम पर शोषण तेजी से बढ़ा है।



 हम हर सुबह बवाना से गुड़गांव, नोएडा से बादली तक काम पर जाते हैं, लेकिन यह भी तय नहीं होता कि हम सुरक्षित लौटेंगे या नहीं। फैक्ट्रियों में आग लगती रहती है, मजदूर जिंदा जलते हैं, उत्पादन बढ़ाने के लिए मशीनों से सुरक्षा सेंसर हटा दिए जाते हैं, और मजदूरों को 12-12 घंटे काम करने को मजबूर किया जाता है—फिर भी न्यूनतम वेतन से कम तनख्वाह में दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से नसीब होती है। महिला मजदूरों का शोषण और भी गहरा है—उन्हें पुरुषों से कम वेतन दिया जाता है। यही वजह है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने महिलाओं को नाइट शिफ्ट में काम करने की इजाज़त दी है।"
जानकारी के अनुसार यह रैली गड्ढा बस्ती से शुरू होकर बवाना औद्योगिक क्षेत्र के समोसा चौक पर समाप्त हुई। रैली को संबोधित करते हुए कार्यकर्ता नौरिन ने कहा कि यह रैली शासक पूंजीपति वर्ग और उसकी कठपुतली मोदी सरकार के लिए एक चेतावनी और जागरूकता का आह्वान है। कोई भी पुलिस बैरिकेड उस श्रमिक सैलाब के सामने नहीं टिक सका जो एक निर्णायक लड़ाई के लिए तैयार है। आने वाले दिनों में मजदूर काम बंद कर देंगे और फैक्ट्रियाँ तब तक वीरान रहेंगी जब तक श्रम कानूनों का पूरी तरह से पालन, न्यूनतम वेतन, ईएसआई, पीएफ और सुरक्षा प्रबंधों को लागू नहीं किया जाता।"



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