देशभर के छात्रों के लिए समान अवसर की मांग: "दिसा" ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र
नई दिल्ली, 29 जुलाई।
गांव-देहात और शहरी अनियमित कॉलोनियों में शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत संगठन डेवलपिंग इंडिपेंडेंट स्कूल अलायंस ट्रस्ट (दिसा) ने देशभर में एक समान पाठ्यक्रम लागू करने की मांग को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्यवीर सिंह मावी ने प्रधानमंत्री से अपील की है कि वे प्रवासी और गरीब तबके के बच्चों की शैक्षणिक असमानता को समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से निर्णायक पहल करें।
सत्यवीर मावी ने पत्र में उल्लेख किया है कि दिसा ट्रस्ट दिल्ली और देशभर के विभिन्न ग्रामीण व पिछड़े इलाकों में संचालित लगभग 1100 स्कूलों का प्रतिनिधित्व करता है, जिनमें अधिकांश छात्र ऐसे परिवारों से आते हैं जो रोज़ी-रोटी की तलाश में प्रदेश दर प्रदेश पलायन करते रहते हैं। उनके अनुसार, जब एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर बच्चे किसी नए स्कूल में दाख़िला लेते हैं, तो अलग-अलग पाठ्यक्रमों के चलते उनकी पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित होती है और वे अन्य छात्रों की तुलना में पिछड़ जाते हैं।
समान पाठ्यक्रम से शिक्षा में समानता
मावी का कहना है कि अगर देशभर में एकसमान पाठ्यक्रम लागू किया जाए तो प्रवासी और गरीब छात्रों को हर राज्य में एक जैसी शिक्षा मिल सकेगी। इससे न केवल शैक्षणिक गुणवत्ता बढ़ेगी बल्कि शिक्षा सर्वजन हिताय और सुलभ भी होगी। उनका यह भी कहना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के आलोक में यह समयसापेक्ष मांग है, जिसे केंद्र सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए।
गरीब और वंचित तबकों के लिए शिक्षा की रोशनी
दिसा ट्रस्ट पिछले कई वर्षों से झुग्गी-बस्तियों, ग्रामीण अंचलों और दिल्ली के अनधिकृत कॉलोनियों में शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही है। संस्था का मुख्य उद्देश्य ऐसे बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और सतत शिक्षा प्रदान करना है जो मुख्यधारा की शिक्षा से कटे हुए हैं।
सत्यवीर मावी ने उम्मीद जताई है कि प्रधानमंत्री इस जनहित के मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए देशभर में एक समान पाठ्यक्रम लागू करने संबंधी नीतिगत दिशा-निर्देश जल्द जारी करेंगे ताकि "एक भारत, एक शिक्षा" की परिकल्पना साकार हो सके। वहीं, निष्कर्ष में बता दे कि यह केवल एक संगठन की मांग नहीं, बल्कि उन लाखों छात्रों की आवाज़ है जो शिक्षा के अधिकार के बावजूद असमान पाठ्यक्रम के कारण बराबरी का सपना नहीं देख पाते।
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