मुक्ति पर्व 2025ः आत्मिक स्वतंत्रता और सेवा-समर्पण का संदेश

मुक्ति पर्व 2025ः आत्मिक स्वतंत्रता और सेवा-समर्पण का संदेश

दिल्ली, 15 अगस्त 2025 

जब सम्पूर्ण भारत स्वतंत्रता के 79 गौरवशाली वर्ष का जश्न मना रहा था, उसी समय संत निरंकारी मिशन ने ‘मुक्ति पर्व’ को आत्मिक स्वतंत्रता के पावन संदेश के साथ भव्य रूप में मनाया। यह आयोजन दिल्ली के बुराड़ी रोड स्थित निरंकारी ग्राउंड नं. 8 में निरंकारी राजपिता रमित की पावन अध्यक्षता में हुआ, जिसमें दिल्ली एवं एनसीआर सहित देश-विदेश से हज़ारों श्रद्धालु शामिल हुए।
इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने मिशन के महान संतों—शहनशाह बाबा अवतार सिंह, जगत माता बुद्धवंती, राजमाता कुलवंत कौर, माता सविंदर हरदेव, भाई साहब प्रधान लाभ सिंह और अन्य विभूतियों—को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। मिशन की सभी शाखाओं में भी विशेष सत्संग आयोजित कर संतों के तप, त्याग और सेवा भावना को स्मरण किया गया।

समारोह को संबोधित करते हुए निरंकारी राजपिता ने कहा कि"देश की आज़ादी हमें भौतिक विकास का मार्ग देती है, लेकिन आत्मिक स्वतंत्रता ही असली मुक्ति है। ब्रह्मज्ञान हमें ‘मैं’ और अहंकार से मुक्त कर, सेवा और भक्ति के जीवन की ओर ले जाता है। सच्ची भक्ति तब है जब हम हर परिस्थिति में सतगुरु की इच्छा को स्वीकार कर लें।"उन्होंने स्पष्ट किया कि मुक्ति पर्व की जड़ें 1964 में जगत माता बुद्धवंती जी की स्मृति में आयोजित ‘जगत माता दिवस’ से जुड़ी हैं, जो बाद में ‘जगत माता-शहनशाह दिवस’ और फिर 1979 में ‘मुक्ति पर्व’ कहलाया। 2018 से माता सविंदर हरदेव को भी इस दिन श्रद्धांजलि दी जाती है।

मुक्ति पर्व का सार यही है कि जैसे भौतिक स्वतंत्रता राष्ट्र को आगे बढ़ाती है, वैसे ही आत्मिक स्वतंत्रता जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति दिलाती है। यह मुक्ति केवल ब्रह्मज्ञान की रोशनी से संभव है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़कर जीवन को उसके वास्तविक उद्देश्य से परिचित कराती है। यह आयोजन न सिर्फ भक्ति का उत्सव था, बल्कि यह संदेश भी कि सेवा, त्याग और समर्पण के बिना न तो राष्ट्र की आज़ादी सार्थक है और न ही आत्मा की मुक्ति।


Comments