-"प्रजापति समाज ने ठाना है, माटी कला बोर्ड बनवाना है!"
नई दिल्ली, 1 अगस्त 2025 / MCD LIVE NEWS
दिल्ली में रह रहे लाखों प्रजापति समाज के लोगों में इस समय भारी असंतोष व्याप्त है। पारंपरिक मिट्टी शिल्पकारों के कल्याण के लिए माटी कला बोर्ड के गठन की वर्षों पुरानी मांग को लगातार नजरअंदाज़ किए जाने पर अब समाज खुलकर विरोध में उतर आया है। इस बार राहुल प्रजापति ने पूर्व केजरीवाल सरकार को सीधे निशाने पर लेते हुए सवाल किया है — “क्या केजरीवाल सरकार को पर्यावरण की परवाह नहीं? क्या पारंपरिक कारीगरों का कोई मूल्य नहीं?”
राष्ट्रीय प्रजापति महासंघ द्वारा समाज कल्याण मंत्री रविंद्र इंद्राज को सौंपे गए पत्र में गंभीर आरोप लगाए गए हैं कि बीते वर्षों में माटी कला बोर्ड के गठन की मांग को लेकर दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, विधानसभा अध्यक्ष राम निवास गोयल, कैबिनेट मंत्री गोपाल राय सहित अनेक विधायकों को 23 से अधिक ज्ञापन सौंपे गए, परंतु किसी ने भी ठोस कार्रवाई नहीं की। मांगों की लंबी फेहरिस्त, लेकिन सरकार बनी रही मौन
प्रजापति समाज ने माटी कला बोर्ड के तहत कई महत्वपूर्ण योजनाओं की मांग की है, जिनमें शामिल हैं:
पारंपरिक कुम्हारों का पंजीयन
माटी शिल्पकार बीमा योजना
मिट्टी उत्पादों के लिए कॉमन फैसिलिटी सेंटर
इलेक्ट्रिक चाक और टूलकिट वितरण योजना
प्रशिक्षण केंद्र, पुरस्कार योजना और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता
- राजनीतिक रुख बदल रहा है
अजित प्रजापति (दिल्ली प्रदेश संयोजक), रोहित प्रजापति (जिला सचिव) और लीलू प्रधान (प्रदेश जिला संयोजक) ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि दिल्ली में लगभग 11 लाख से अधिक प्रजापति समाज के वोटर्स हैं, जिन्होंने इस बार केजरीवाल सरकार को नकारते हुए भाजपा का खुलकर समर्थन किया है।
राष्ट्रीय प्रजापति महासंघ में युवा प्रदेश अध्यक्ष राहुल प्रजापति ने एक बयान में कहा कि जिस सरकार को हमारी चिंता नहीं, उसे हम क्यों चुनें? पर्यावरण की रक्षा करने वाले, देश की मिट्टी से जुड़े हमारे समाज को अपमानित किया जा रहा है। अब समय आ गया है कि हम अपने हक के लिए निर्णायक कदम उठाएं। उन्होंने कहा कि "प्रजापति समाज ने ठाना है, माटी कला बोर्ड बनवाना है!"
- क्या दिल्ली सरकार देगी जवाब?
इस प्रकरण से यह स्पष्ट हो रहा है कि दिल्ली सरकार के वादों और धरातल पर किए जा रहे कार्यों में भारी अंतर है। दिल्ली जैसे आधुनिक शहर में पारंपरिक शिल्पकारों की उपेक्षा न सिर्फ सामाजिक अन्याय है, बल्कि पर्यावरण के हित में भी एक बड़ी चूक है। अब देखना यह होगा कि क्या वर्तमान दिल्ली सरकार इस गंभीर मांग पर ध्यान देती है या प्रजापति समाज को फिर से निराशा का सामना करना पड़ेगा।
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