या हुसैन" की सदा से गूंज उठा गाज़ियाबाद


"या हुसैन" की सदा से गूंज उठा गाज़ियाबाद — शबहेदारी और जुलूस-ए-हुसैनी में उमड़ा अकीदतमंदों का सैलाब

- गाज़ियाबाद ने एक बार फिर दिखा दिया — "हुसैन सबका है, और कर्बला हर दौर का पैग़ाम है।"

 गाज़ियाबाद, 4 अगस्त 2025 MCD LIVE NEWS

ग़म-ए-हुसैन में डूबा गाज़ियाबाद का फिज़ा आज "लब्बैक या हुसैन" की सदाओं से गूंज उठा। दरबार-ए-बिन्तुल हुसैन, गौशाला फाटक से निकले वार्षिक जुलूस-ए-शबहेदारी में हज़ारों अज़ादारों ने हिस्सा लेकर कर्बला के शहीदों को ख़िराज-ए-अकीदत पेश किया। जुलूस का आयोजन आले हुज़ूर हसन ट्रस्ट द्वारा निर्मित इमामबाड़ा से हुआ, जिसमें शबिहे ताबूत, शबिहे झूला (हज़रत अली असगर की याद में), अलम, ज़ुलजनाह, और कमंटे के अलम शामिल थे। जुलूस के दौरान अज़ादारों ने नौहा और मातम करते हुए इमाम हुसैन की शहादत को याद किया।

- चांदी के हारों से सजे अलम, श्रद्धा का प्रतीक
झूले को चांदी के हारों और फूलों से सजाया गया था। मातमदारों ने अपने जज़्बात को मातम और आंसुओं से बयान किया। जुलूस रिवायती रास्तों से होता हुआ फ़ैज़ी अकरम के मकान तक गया और फिर वापस दरबार-ए-बिन्तुल हुसैन में समाप्त हुआ।

- जुलूस में उठी इंसानियत और अमन की पुकार
मौलाना ग़ज़नफ़र अब्बास ने मजलिस में कहा कि "हज़रत इमाम हुसैन ने कर्बला में सिर्फ इस्लाम ही नहीं, पूरी इंसानियत को ज़िंदा किया। उन्होंने ज़ुल्म के ख़िलाफ़ खड़े होकर हमें सिखाया कि सच और हक़ के रास्ते से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। यज़ीद आज भी आतंक और ज़ुल्म का प्रतीक है, जबकि हुसैन अमन और इंसाफ़ का नाम है।"

- मजलिस और नौहा खानी से रातभर गूंजता रहा अज़ाखाना
शबहेदारी की मजलिस में देशभर की मशहूर अंजुमनों ने शिरकत की: अंजुमन ए अकबरी, धोर्डली, अंजुमन ए लश्कर ए हुसैनी, अंजुमन ए हैदरी, मुज़फ्फरनगर, अंजुमन तंजीम ए मातम, अमरोहा, अंजुमन सदाए हुसैनी, गाज़ियाबाद, अंजुमन अब्बासिया, राजनगर, गुलाम सज्जाद और अली ज़ामिन के सोज़ और सलाम से अज़ादारों की आंखें नम हो गईं। मौलाना नाज़िश हुसैन और मौलाना मूसी रज़ा ने निज़ामत करते हुए मजलिस को प्रभावशाली बनाया।

- कमिश्नरेट पुलिस को धन्यवाद
कार्यक्रम के आयोजक आले अबुतुराब नकवी ने गाज़ियाबाद पुलिस कमिश्नरेट और स्थानीय प्रशासन को शांतिपूर्वक आयोजन संपन्न कराने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने सभी अज़ादारों के जज़्बे को सलाम करते हुए उनके अच्छे मुस्तकबिल के लिए दुआ की।

- "मोहर्रम का जुलूस आतंक के ख़िलाफ़ विरोध का प्रतीक है"
जुलूस और मजलिसों के ज़रिए दुनिया को यह पैग़ाम दिया गया कि "हम ज़ुल्म और सितम करने वालों के साथ नहीं हैं।" यह सिर्फ मज़हबी आयोजन नहीं, इंसाफ़, इंसानियत और हक़ का पैग़ाम है।


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