दस महीने से एमसीडी सफाई कर्मचारी को नहीं मिला वेतन




दस महीने से एमसीडी सफाई कर्मचारी को नहीं मिला वेतन
- निगम सफाईकर्मी ने पत्र व वीडियो के माध्यम से बयां किया दर्द
- “उधार लेकर ड्यूटी पर जाता हूँ“, पर अधिकारी हैं मौन’’


नई दिल्ली MCD LIVE NEWS 


दिल्ली नगर निगम के वार्ड 187 में तैनात निगम सफाई कर्मचारी विकास सुपुत्र अतरपाल की ज़िन्दगी पिछले दस महीनों से एक त्रासदी बन चुकी है। विकास ने निगम उपायुक्त को पत्र लिखकर और एक वीडियो जारी कर अपील करते हुए कहा कि पिछले ’दस महीनों’ से तनख्वाह नहीं मिली है, और इसकी वजह हैं उनके ही विभाग के सेनेट्री इंस्पेक्टर यानी एसआई सुरेश और एएसआई सुन्दर जो उनकी गुहार को लगातार अनसुना कर रहे हैं। विकास ने लाजपत नगर जोन उपायुक्त को भेजे गए अपने पत्र में साफ कहा है कि ’मैं ड्यूटी पर जाने के लिए रोज़ उधार लेकर सफर करता हूँ, और अब जिससे कर्ज लिया है, वह भी परेशान कर रहा है।’ विकास की यह कहानी न केवल व्यक्तिगत पीड़ा की प्रतीक है, बल्कि निगम की ’विफलता’, ’प्रशासनिक असंवेदनशीलता’ और ’नेताओं की दोहरी बातों’ की भी पोल खोलती है।

-  कहां गए निगम नेताओं के धनवर्षा वाले दावें?
दिल्ली नगर निगम के नेता मंचों से दावे करते नहीं थकते कि ’साफ-सफाई के लिए फंड की कोई कमी नहीं है’ और ’सफाई कर्मचारियों को पूरा सम्मान और वेतन मिलेगा’ लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही बयां कर रही है। जब एक कर्मचारी को 10 महीने तक तनख्वाह नहीं मिलती, और वह कर्ज में डूब कर रोज़ सफाई करने जाता है, तो तीन सवाल उठते हैं

1 ’’क्या यही है ‘स्वच्छ दिल्ली’ की हकीकत?’’
2 ’’क्या निगम कर्मचारियों के हक़ की कोई कीमत नहीं है?’’
3 ’’क्यों जिम्मेदार अधिकारी कार्रवाई से बच रहे हैं?’’

- कर्मचारी की आवाज़, प्रशासन की खामोशी
निगम सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सेनेट्री इंस्पेक्टर सुरेश और एएसआई सुन्दर के खिलाफ़ पहले भी कई कर्मचारियों ने ’भेदभावपूर्ण व्यवहार’ और ’तनख्वाह रोकने’ की शिकायतें की हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। जब निगम महापौर और स्थायी समिति अध्यक्ष मंचों से कहते हैं कि “हमारे पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है“, तो ’विकास जैसे सफाईकर्मी की हालत’ उनकी ’असली नीयत’ को उजागर करती है।

- जनहित में जानकार लोगों की मांग
जिस किसी को भी विकास की इस पीड़ा की जानकारी मिलती है, उसका यही कहना है कि
निगम उपायुक्त को तत्काल हस्तक्षेप कर सफाई कर्मचारी विकास की ’10 महीने की बकाया तनख्वाह’ दिलानी चाहिए। जिम्मेदार अधिकारियों पर ’जांच’ और ’अनुशासनात्मक कार्रवाई’ होनी चाहिए। निगम को ऐसे सभी कर्मचारियों की सूची सार्वजनिक करनी चाहिए जिनकी तनख्वाह बकाया है।

- बता दें कि “स्वच्छ भारत“ की नींव पर खड़े वो सफाईकर्मी, जिनके बिना कोई अभियान संभव नहीं, आज खुद अपमान, तिरस्कार और आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। यह ’सिर्फ़ एक कर्मचारी की कहानी नहीं’, बल्कि एक ’व्यवस्था की विफलता’ है - जहां ’सिस्टम की चुप्पी’ और ’अधिकारियों की लापरवाही’ आम आदमी को तोड़ रही है। अब जनता को सवाल पूछने होंगे - क्या वाकई निगम के पास पैसे की कमी नहीं है, या संवेदनशीलता की?

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