पराली नहीं, पर्यावरण बचाओ: दिल्ली कृषि विज्ञान केन्द्र की किसानों से अपील

पराली नहीं, पर्यावरण बचाओ: दिल्ली कृषि विज्ञान केन्द्र की किसानों से अपील

“फसल अवशेषों को जलाना नहीं, खेत की सेहत और सांसों की रक्षा करना है हमारा कर्तव्य”

नई दिल्ली / नजफगढ़ 

राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण की स्थिति हर साल दीपावली के आसपास चिंताजनक स्तर तक पहुँच जाती है। इस वर्ष भी दिल्ली का आकाश धुएँ से ढकने से पहले ही कृषि विज्ञान केन्द्र, दिल्ली ने किसानों से एक महत्वपूर्ण जनहित अपील जारी की है — “फसल के अवशेषों को ना जलाएँ, ना ही किसी को जलाने दें।”
कृषि विज्ञान केन्द्र, उजवा के अध्यक्ष डॉ डी के राणा ने कहा कि दिल्ली क्षेत्र में अधिकतर किसान हाथ से कटाई करते हैं, इसलिए पराली की मात्रा बहुत कम होती है। परंतु, धान की मढ़ाई के बाद जो थोड़े-बहुत अवशेष खेतों में रह जाते हैं, उन्हें कुछ किसान जला देते हैं — यही धुआँ आस-पास के क्षेत्रों में फैलकर प्रदूषण को कई गुना बढ़ा देता है।

#पराली जलाने से होता है नुकसान

विशेषज्ञों के अनुसार, धान की मात्र एक किलो पराली जलाने से 0.7 से 4.4 ग्राम मिथेन (CH₄) और 0.019 से 0.057 ग्राम नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) जैसी खतरनाक गैसें वातावरण में जाती हैं।
इन्हीं गैसों के कारण न सिर्फ हवा जहरीली होती है, बल्कि सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन क्लोराइड, और डाइऑक्साइन्स जैसी गैसें भी बनती हैं जो सांस की बीमारियों, आंखों में जलन और त्वचा एलर्जी का कारण बनती हैं। कृषि विशेषज्ञों ने चेताया कि फसल अवशेष जलाना केवल प्रदूषण ही नहीं फैलाता, बल्कि भूमि की उर्वरता, मित्र कीटों और पोषक तत्वों को भी नष्ट कर देता है। लंबे समय में यह कृषि उत्पादन को कमजोर बनाता है और जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या को और बढ़ाता है।

# वैकल्पिक उपाय और अपील

कृषि विज्ञान केन्द्र ने किसानों से आग्रह किया है कि वे फसल के बचे हुए अवशेषों को खेत में मिलाकर खाद या मल्चिंग के रूप में उपयोग करें। कृषि यंत्रों जैसे हैप्पी सीडर, सुपर सीडर या स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (SMS) का उपयोग करें। पराली को पशु चारे या जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल करें।वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर किसान अवशेषों को खेत में मिलाते हैं तो मिट्टी की नमी बनी रहती है, पोषक तत्व लौट आते हैं और अगली फसल की उत्पादकता भी बढ़ती है।

#किसानों की जिम्मेदारी, नागरिकों की उम्मीद
दिल्ली के किसान हमेशा जागरूक रहे हैं — उन्होंने वर्षों से पराली जलाने की परंपरा को लगभग खत्म कर दिया है। अब जो कुछ सीमित उदाहरण हैं, उन्हें समाप्त करने की जिम्मेदारी हम सबकी है। कृषि विज्ञान केन्द्र की इस अपील का मूल संदेश है कि “फसल के अवशेषों को हम ना जलाएँगे, ना ही किसी को जलाने देंगे। इन अवशेषों को भूमि में मिलाएँगे, पर्यावरण को प्रदूषण से बचाएँगे।”

# जनहित में संदेश
“फसल अवशेषों को लगाने से आग,
पोषक तत्व व मित्र कीट होते हैं खाक।
धान की पराली को ना जलाओ,
दिल्ली के वातावरण को बचाओ।”

यह संदेश केवल किसानों के लिए नहीं, बल्कि हर नागरिक के लिए है — क्योंकि स्वच्छ हवा सिर्फ खेतों में नहीं, हमारे फेफड़ों में भी बचाई जानी है।

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